Sunday 25 November 2018

बेटी नहीं समाज बोझ है

बोझ बेटियाँ नहीं होती क्या यह सही है पर कितना सही है इसका अंदाजा नहीं हैं बोझ पिता पर नहीं है माँ पर नहीं फिर भी बोझ ही क्यों जातीं हैं कही माँ बाप दोनों को बेटी बेटों के समान है छोटी सोच बनाता समाज का निचला निशान है बड़े नाजो से माँ बाप बेटी को पालते है आघात तो तब लगता है जब दहेज के लोभी बेटी के बाप को टालते है बेटी की शादी के लिए बाप अपनी रोटी भी बेचने को तैयार हैं फिर भी इन्कार मिला बाप को समाज को तो दहेज से प्यार है बेटी बोझ कभी न होती जो समाज की सोच छोटी न होती वाह रे दहेज के लोभी तेरी लोभ में कमी ही नहीं आती घर में जितना ज्यादा धन दहेज की भूख तेरी बढ़ जाती

Sunday 18 November 2018

25 % आरछण

निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान मध्यवर्ग के बाद गरीब और वंचित वर्गों के लोगों का भी सरकारी स्कूलों से भरोसा तोड़ने वाला कदम साबित हो रहा है। यह एक तरह से गैर बराबरी और शिक्षा के बाजारीकरण को बढ़ावा देता है और सरकारी स्कूलों में पढ़ने वालों का भी पूरा जोर निजी स्कूलों की ओर हो जाता है। जो परिवार थोड़े-बहुत सक्षम हैं वे अपने बच्चों को पहले से ही निजी स्कूलों में भेज रहे हैं लेकिन जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर है, कानून द्वारा उन्हें भी इस ओर प्रेरित किया जा रहा है। लोगोंका सरकारी स्कूलों के प्रति विश्वास लगातार कम होता जा रहा है जिसके चलते साल दर साल सरकारी स्कूलों में प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या घटती जा रही है। ऐसा नहीं है कि इससे पहले अभिभावकों में निजी स्कूलों के प्रति आकर्षण नहीं था लेकिन उपरोक्त प्रावधान का सबसे बड़ा संदेश यह जा रहा है कि सरकारी स्कूलों से अच्छी शिक्षा निजी स्कूलों में दी जा रही है इसलिए सरकार भी बच्चों को वहां भेजने को प्रोत्साहित कर रही है। देखने में आ रहा है कि शिक्षातंत्र का ज्यादा जोर मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के तहत तय किए गए निजी स्कूलों की 25 फीसद सीटों पर दाखिले को लेकर है और वहां के शिक्षक इलाके के गरीब बच्चों के निजी स्कूलों में दाखिले के लिए ज्यादा दौड़ भाग कर रहे हैं। सरकारी स्कूलों के शिक्षक इस बात से हतोत्साहित भी हैं कि उन्हें अपने स्कूलों में बच्चों के दाखिले के बजाय निजी स्कूलों के लिए प्रयास करना पड़ रहा है। इस प्रकार पहले से कमतर शिक्षा का आरोप झेल रहे सरकारी स्कूलों पर स्वयं सरकार ने कमतरी की मुहर लगा दी है। यह प्रावधान सरकारी शिक्षा के लिए भस्मासुर बन चुका है। यह एक गंभीर चुनौती है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि अगर सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था ही धवस्त हो गई तो फिर शिक्षा का अधिकार की कोई प्रासंगिकता ही नहीं बचेगी। इधर सरकारी स्कूलों को कंपनियों को ठेके पर देने या ‘पीपीपी मोड’ पर चलाने की चर्चाएं जोरों पर हैं और कम छात्र संख्या के बहाने इन स्कूलों को बड़ी तादाद में बंद किया जा रहा है। निजी स्कूल मालिकों की लॉबी और नीति निर्धारकों का पूरा जोर इस बात पर है कि किसी तरह से सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को नाकारा साबित कर करते हुए इसे पूरी तरह ध्वस्त कर दिया जाए ताकि निजीकरण के लिए रास्ता बनाया जा सके। निजीकरण से भारत में शिक्षण के बीच खाई बढ़ेगी और गरीब और वंचित समुदायों के बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। 1964 में कोठारी आयोग ने प्राथमिक शिक्षा को लेकर कई ऐसे महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए थे जो आज भी लक्ष्य बने हुए हैं। आयोग का सुझाव था कि समाज के अंदर व्याप्त जड़ता सामाजिक भेद-भाव को समूल नष्ट करने के लिए समान स्कूल प्रणाली एक कारगर औजार होगी। समान स्कूल व्यवस्था के आधार पर ही सभी वर्गों और समुदायों के बच्चे एक साथ समान शिक्षा पा सकते हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो समाज के उच्च कहे जाने वाले वर्गों के लोग सरकारी स्कूल से भागकर निजी स्कूलों का रुख करेंगे और पूरी प्रणाली ही छिन्न-भिन्न हो जाएगी। लोकतंत्र में राजनीति ही सब कुछ तय करती है लेकिन दुर्भाग्यवश शिक्षा का मुद्दा हमारी राजनीतिक पार्टियों के एजेंडे में नहीं है और न यह उनकी विकास की परिभाषा के दायरे में आता है। हमारे राजनेता नारे गढ़ने में बहुत माहिर हैं, अब देश के बच्चों के लिए भी उन्हें एक नारा गढ़ना चाहिए ‘सबके लिए समान, समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा’ का नारा।

Friday 16 November 2018

असमंजस

अक्सर हम लोग कहते हैं कि कर्म भाग्य से बड़ा होता है पर आप कर्म भी उतना ही करते हैं जितना भाग्य में लिखा रहता है किसी का बुरा मत करो लोग तो यह भी बताते पर बुरा वही करते हैं जो यह मार्ग सुझातसुझाते है गुजरी किस पर क्या यह कौन जाने समझदार वही जो सही गलत पहचाने अब कौन किसकी मानता है गुजरी है जिस पर वही जानता है मार्ग तो हर कोई बता देता है पर चले कैसे यहीं दगा देता है

Thursday 15 November 2018

हम सब कुछ जानते हैं

यूँ तो हम सब कुछ जानते हैं फिर भी सच्चाई को कहाँ मानते हैं खोजते हैं महक कगजो के फूल में यूँ ही बीत जाता है जीवन भूल में एक न एक दिन तो सच सामने आ ही जाता है करना पड़ता है यकीन चाहे झूठ से कितना ही नाता है लोग सपने तो हर रोज ही सजाते लेते है भुला कर अपने लक्ष्य को तसल्ली दिला लेते है हर रोज खुद से बहुत बड़ा वादा करते है करेंगे कल से यह उम्मीद हद से ज्यादा करते हैं यह सब जानते हैं कि कल किस का आया है बना वही है है जिसने आज खुद को मिटाया है

Tuesday 13 November 2018

वास्तविक सफलता

अक्सर हम लोग किसी परीक्षा या किसी काम में सफल होने को ही अपनी असल सफलता मानते है पर मेरी नजर में यह कोई न तो आश्चर्य है ना ही सफलता का शिखर । पर सफलता हैं क्या और कैसी हो ?? मेरा मानना है कि सफलता वह है जिसे पाने के बाद जो खुशी आप को मिले उसी खुशी का अहसास अन्य लोगों को भी कराए।तो यह तो थी कि सफलता क्या है के प्रश्न का जवाब चलिए जानते हैं कैसे का जवाब ।यहाँ मुझे अपने देव तुल्य गुरुदेव श्री श्याम सुंदर पाठक जी का उदाहरण लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है गुरुदेव आज एक उच्च पद पर आसीन है और लोगों के दिलों में भी। कहानी कुछ इस तरह से है मैं एक दिन किसी काम के सिलसिले में बाहर बैठा था अचानक मैंने एक घर में रोने की आवाज सुनी जब जानकारी मिली कि रोने की आवाज और कहीं से नहीं वरन् मेरे ही एक परिचित के घर से आ रही है जब तक मैं पहुँचा वहाँ काफी भीड़ जमा हो गई लोगों से पूछा तो पता चला कि राज (दोस्त का नाम) की पत्नी काफी बीमार है खैर राज के परिजन अस्पताल ले गए वहाँ पता चला की बीमारी गम्भीर हैं ऑपरेशन होगा डॉक्टरों ने 19 November की date दे दी । राज का परिवार की आर्थिक स्थिति गड़बड़ है उस के घर में राज की पत्नी के अलावा माँ बाप और उसकी 1साल की बच्ची है जो माँ की बीमारी से काफी आहत है जो कभी खिलखिलाती हुई पूरे घर में रोनक बिखेरने के लिए जानी जाती थी वो सहमी सहमी सी रहती है । एक दिन राज मेरे पास आया बोला पैसों का इन्तजाम नहीं हो पा रहा है कुछ पैसे हो तो दो मैंने कहा मेरे पास पैसे नहीं हैं यह सुनकर वो उदास हो गया कहने लगा मेरी बच्ची भी दुआ देगी ।। मैंने उसकी 1साल की बच्ची की ओर निहारा और कल्पना की अगर इसकी माँ नहीं रही तो बहुत अनर्थ हो जायेगा मैं ने उसे कुछ पैसे दिए पर इतनी छोटी धनराशि उसके लिए ऊॅट के मुंह में जीरा के समान थी । राज ने अपनी कुछ चीजें बेच दी अब कुछ ही पैसों की कमी थी आपरेशन के लिए पर यह जो कमी थी इसने तो उसके पसीने ही छुड़ा दिये क्यों कि वह अब जो चीज बेच रहा था उसकी अक्सर गांव में कोई जरूरत नहीं होती वो वस्तु थी mini laptop । राज मेरे पास फिर आया मैं सोचा क्यों न मैं यह किसी अपने को दिला दूँ सस्ते दामों में यह मेरे किसी अपने को मिल जाएगा और राज की भी मदद हो जाएगी मैं ने कुछ से पूछा पर किसी ने नहीं लिया अब मैं भी हार मान चुका था कि अचानक मैंने phone मैं गुरुदेव का number देखा मैंने गुरुदेव को msg किया गुरुदेव के पास पहले से ही laptop था उन्हेंने भी मना कर दिया पर जब मैंने गुरुदेव को सारी कहानी सुनाई तो गुरुदेव बिना laptop खरीदे पैसे देने को तैयार हो गए मैंने यह बात जब राज को बताई पर वो सहमत नहीं हुआ । राज को देख मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसे वक्त में भी वह आत्म सम्मान से भरा हुआ है ।मैंने गुरुदेव को सारी कहानी फिर सुनाई तो गुरुदेव बिना आवश्यकता के केवल राज की मदद की खातिर laptop खरीदने के लिए सहमत हो गए । यह घटना देख मुझे कक्षा 12 कि a girl with a basket की कहानी याद आती है फर्क सिर्फ इतना ही था कि कहानी के दोनों पात्र मेरे समक्ष थे उस कहानी में William c Douglas ने भी गुरुदेव की भाँति बिना टोकरी खरीदे लड़की को पैसे देने चाहे यहाँ गुरुदेव ने बिना laptop खरीदे लेकिन इस कहानी में गुरुदेव श्री श्याम सुंदर पाठक जी William c Douglas से भी महान सिद्ध हुए हैं कैसे? आगे कि कहानी जब आप पड़ेंगे तो खुद ही समझ जाओगे । अब laptop गुरुदेव को भेजा गया कुछ दिनों बाद laptop गुरुदेव के पास पहुँचा पर हमारी डाक प्रणाली को धिक्कार और कर्मचारीयो की लापरवाही के नतीजतन Laptop खराब पहुँचा गुरुदेव की दरिया दीलि देखिए गुरुदेव ने मुझे phone किया और बताया कि " बेटा laptop तो खराब है मैं पैसे और laptop दोनों भेजा रहा हूँ " यह सुनकर मैं स्तब्ध रह गया मुझे अपने कि ये पर अपार पक्षतावा हुआ मैं गुरुदेव से क्षमा माँगने लगा पर गुरुदेव ने मुझे क्षमा कर दिया और कहा कोई बात नहीं take it easy। धन्य है आप गुरुदेव मैंने आप को देख लिया अब ईश्वर को देखने की आवश्यकता नहीं यहाँ विचार मेरे मन उभर रहे थे । पर कहानी यही समाप्त नहीं होता होती अपना राज भी उसूलो का पक्का मैं बात घुमाकर कहा कि गुरुदेव तुम्हें पैसे भी दे देंगे और laptop भी राज रो कर बोला गुरुदेव जैसे देवता की अच्छाई का मैं फायदा नहीं उठा सकता बिना laptop दिए पैसे नहीं ले सकता फिर मैंने "कहा laptop डाक विभाग ने खराब कर दिया है गुरुदेव क्या करेंगे खराब laptop का ? Laptop onनहीं हो रहा है "फिर क्या था अब राज इतना रोया इतना रोया कि में दिल दहल गया । एक बार मैं ने गुरुदेव से फिर बात की और निवेदन किया कि गुरुदेव आप laptop बापस न भेजे आप तो करूणा के सागर है देख लिजिए कुछ । गुरुदेव मान गए । मैं ने राज कोphone किया और कहा दिया laptop अब onहो गया है ।। आशा करता हूँ की आप सभी वास्तविक सफलता को जान गए होंगे गुरुदेव आपके श्री चरणों में मेरा प्रणाम

Sunday 11 November 2018

कैसे रिश्ते

रिश्ते भी कैसे कैसे हैं हैं हसीना तभी तक जब तक जेब में पैसे है रिश्तोंमें कोई किसी का सगा नहीं वो रिश्ता भी क्या जिसने ठगा नही रिश्तों में राजनीति की हिस्सेदारी है ये चलें उसी से जिसकी पार्टी भारी है इनका खेल भी अजीब निराला है झूठ सभी रिश्तों का साला है

Wednesday 7 November 2018

नायक समाज में आज भी है

दोस्तों अपने लेख की शुरुआत करने से पहले आप सभी को मेरी तरफ से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ आज के बदलते दौर में हमारे सभी कार्य करने के लिए smartphone है चाहे वो किसी को वधाई देने की बात हो या बात करने की या किसी जानकारी को पाने की एक समय ऐसा भी था जब हम किसी पर्व या किसी बिशेष अवसर पर अपने बड़ों का आशीर्वाद लेने के लिए सीधे उनसे मिला करते थे आगामी योजनाओं पर विचार विमर्श किया करते थे लेकिन आज सारी परम्पराओ का स्थान social media और smartphone ने ले लिया है मुझे आज भी याद है कि जब में छोटा था तब मेरी माँ और दादी रात में कई कहानी सुनाती थी उनकी हर कहानी में एक नायक अवश्य होता था जब छोटे थे ये काल्पनिक कहानी बहुत अच्छी लगती थी जब बड़े हुए समाज की समझ आईं अपने आप को कई परेशानियों में फंसा हुआ पाया हजारों प्रयत्न किये परेशानियों से निकलने के पर सफलता नहीं मिली अब मेरे लिए ऐसा एहसास होने ही लगा था कि असल जिंदगी में कोई नायक नहीं होता किसी के दिल में कोई हमदर्दी नहीं यह समाज निष्ठुर और अहंकारी लोगों से भरा हुआ है मेरी सोच भी मेरे हिसाब से सही थी क्यों की एक बेरोजगार युवक इससे ज्यादा और सोच भी क्या सकता है बेरोजगार युवक शब्द से भी बड़ा शब्द कोई अगर शब्द है तो वो है दिशा हीन युवक क्यों कि बेरोजगार को तो एक न एक दिन रोजगार मिल जाता है पर दिशा हीन के मन में जीवन भर यह बात काॅटे की तरह चुभती हैं कि अगर कोई दिशा दिखाता तो वह भी मंजिल पर पहुँच जाता मैं भी इसी दिशाहीन वाले दौर से गुजर रहा था असल जिंदगी में कोई नायक नहीं होता यही विचारधारा को मैं भी सही मान बैठा था अचानक मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिला जिन्हें नायक से भी बड़ी कोई और भी उपाधि दे दी जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही है। मेरा आज का लेख भी उन्हीं को समर्पित है अक्सर आप ने भी अपने जीवन में यह अनुभव किया होगा कि जब व्यक्ति के पास धन हो तो वह अहंकार से भर जाता है लेकिन जरा कल्पना कीजिए अगर व्यक्ति के पास धन के साथ ऊंचा ओहदा भी हो तो वह कितना अहंकारी होगा पर मैं ऐसे व्यक्तित्व से मिला जो अहंकार को झुठलाते एक अपवाद हैं अब आप सोच रहे होंगे कि कि ऐसे तो बहुत है जो अहंकार से परे हैं ।।हाँ आप का सोचना जायज है लेकिन मैं जिनके बारे में बताने जा रहा हूं वो न केवल जीवन के हर क्षेत्र में अव्वल है वरन् अहंकार से परे लोगों की सूची में भी अव्वल है जो लोग उन्हें जानते वो समझ गए होंगे कि मैं बात कर रहा हूँ आदरणीय श्री ss pathakji कि जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है जो आदर्शों की मिसाल हैं ।uppcs की परीक्षा में top 10 में स्थान पाया ।आप छात्रों के बीच सबसे कठिन समझें जाने वाले बिषय chemistry में PhD कर इसके प्रवक्ता भी रह चुके हैं ।ये तो थी आप की उपलब्धियाँ । जो जग जाहिर है लेकिन मैं बात कर रहा हूँ इनकी व्यक्तित्व की खूबियो की जितना अब तक मैं समझ पाया हूँ कि इतनी उपलब्धियाँ पाने के बाद भी अहंकार आस पास भी नहीं फटकता आज निःस्वार्थ भाव से दिशा हीन युवकों को दिशा दिखाते एक दीपक की तरह चमक बिखरे हुए हैं । मुझे भी आपका शिष्य होने का गौरव प्राप्त हुआ यह मेरे लिए परम् सौभाग्य की बात है आज मेरी तरह लाखों युवकों के लिए आदर्श है जो सच्चे मायनों में आज समाज के नायक है । सच कहूँ तो अगर 10% सरकारी कर्मचारी भी पाठक जी के आदर्शों को अपना ले तो देश में युवकों को दिशा और देश को तरक्की पाने से कोई नहीं रोक सकता ।।। इनके ऐसे बहुत सारे किस्से हैं जो मैं अपने लेख में फिर शामिल करूँगा ।।। आदरणीय गुरुदेव श्री ss pathak Ji मेरा प्रणाम स्वीकार करें

Tuesday 30 October 2018

अपने भी पराये होने लगे हैं वक्त के साथ चमक खोने लगे हैं रिश्तों में इस कदर झोल है अब संसार में पैसे का मोल है विश्वासघात की फसल सब बोने लगे हैं अपने भी अब पराये होने लगें हैं हर तरफ छल कपट का खेल है स्वार्थ ही से सबका मेल है राजनीति इस कदर हावी हैं कि छल ही सब तालो की चाबी है जमीर भी सबके खोने लगें हैं अपने भी पराये होने लगें हैं ना कोई किसी का इस संसार में सानी है अन्दर से है कपट भरा पर कोमल वानी है अब झूठो का बोलबाला है साॅचो का मुंह काला है चाहतो के जमाने दूर जाने लगें हैं अपने भी पराये होने लगें हैं ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

Saturday 20 October 2018

missing responsibilities

sometimes its happen we wants to do lot of things but fail .we make lots of plan to achieve our aim but fail again .its raises a question in our mind are we capable or cheating with ourself this question is also right on its place because of if we fail in executing plan then how can we think about success .success is not like t20 match but it is result of long term process .in fact we also know it then what is that which pushed into failure . as far as I consider it is our missing of our responsibilities we are not aware to our aim .other fact is it we live in this hallucination that we are doing well.

बेटी नहीं समाज बोझ है

बोझ बेटियाँ नहीं होती क्या यह सही है पर कितना सही है इसका अंदाजा नहीं हैं बोझ पिता पर नहीं है माँ पर नहीं फिर भी बोझ ही क्यों जातीं हैं क...