Thursday 15 November 2018

हम सब कुछ जानते हैं

यूँ तो हम सब कुछ जानते हैं फिर भी सच्चाई को कहाँ मानते हैं खोजते हैं महक कगजो के फूल में यूँ ही बीत जाता है जीवन भूल में एक न एक दिन तो सच सामने आ ही जाता है करना पड़ता है यकीन चाहे झूठ से कितना ही नाता है लोग सपने तो हर रोज ही सजाते लेते है भुला कर अपने लक्ष्य को तसल्ली दिला लेते है हर रोज खुद से बहुत बड़ा वादा करते है करेंगे कल से यह उम्मीद हद से ज्यादा करते हैं यह सब जानते हैं कि कल किस का आया है बना वही है है जिसने आज खुद को मिटाया है

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