Sunday 25 November 2018

बेटी नहीं समाज बोझ है

बोझ बेटियाँ नहीं होती क्या यह सही है पर कितना सही है इसका अंदाजा नहीं हैं बोझ पिता पर नहीं है माँ पर नहीं फिर भी बोझ ही क्यों जातीं हैं कही माँ बाप दोनों को बेटी बेटों के समान है छोटी सोच बनाता समाज का निचला निशान है बड़े नाजो से माँ बाप बेटी को पालते है आघात तो तब लगता है जब दहेज के लोभी बेटी के बाप को टालते है बेटी की शादी के लिए बाप अपनी रोटी भी बेचने को तैयार हैं फिर भी इन्कार मिला बाप को समाज को तो दहेज से प्यार है बेटी बोझ कभी न होती जो समाज की सोच छोटी न होती वाह रे दहेज के लोभी तेरी लोभ में कमी ही नहीं आती घर में जितना ज्यादा धन दहेज की भूख तेरी बढ़ जाती

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