Tuesday 30 October 2018

अपने भी पराये होने लगे हैं वक्त के साथ चमक खोने लगे हैं रिश्तों में इस कदर झोल है अब संसार में पैसे का मोल है विश्वासघात की फसल सब बोने लगे हैं अपने भी अब पराये होने लगें हैं हर तरफ छल कपट का खेल है स्वार्थ ही से सबका मेल है राजनीति इस कदर हावी हैं कि छल ही सब तालो की चाबी है जमीर भी सबके खोने लगें हैं अपने भी पराये होने लगें हैं ना कोई किसी का इस संसार में सानी है अन्दर से है कपट भरा पर कोमल वानी है अब झूठो का बोलबाला है साॅचो का मुंह काला है चाहतो के जमाने दूर जाने लगें हैं अपने भी पराये होने लगें हैं ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

No comments:

Post a Comment

बेटी नहीं समाज बोझ है

बोझ बेटियाँ नहीं होती क्या यह सही है पर कितना सही है इसका अंदाजा नहीं हैं बोझ पिता पर नहीं है माँ पर नहीं फिर भी बोझ ही क्यों जातीं हैं क...